सोमवार, 10 अगस्त 2009

विक्रम जी, की कविता-आज रात......

आज मै विक्रम सिंह जी की लिखी कविता प्रस्तुत कर रही हूं,जो मुझे बेहद पसंद आयी। साथ ही मै बिक्रम जी से माफी भी चाहती हूं, कि बिना उनके इजाजत के मै ऐसा कर रही हूं।
आज रात कुछ थमी-थमी सी
स्वप्न न जानें कैसे भटके
नयनों की कोरो से छलके
दूर स्वान की स्वर भेदी से ,हर आशाये डरी-डरी सी
दर्दो का वह उडनखटोला
ले कर मेरे मन को डोला
स्याह रात की जल-धरा से ,मेरी गागर भरी-भरी सी
शंकाओ का कसता धेरा
कैसा होगा मेरा सवेरा
मंजिल के सिरहाने पर ये ,राहें कैसी बटी-बटी सी
विक्रम[vikram7-vikram7.blogspot.com]

5 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद नंदिता जी, पर मेरा एक अनुरोध हॆ, कि आप अभी अपने लेखन पर ध्यान दे,या उन जानी मानी हस्तियो के रचनाओ को प्रकाशित करे जो हिन्दी जगत के आधार स्तंभ हॆ.

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  2. swapn ....aankhe...dard...raat...sanka ...sabko lekar acchi kavita banai hai ...dhanyawad ...badhai ho..

    -----eksacchai {AAWAZ}

    http://eksacchai.blogspot.com

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