आज मै विक्रम सिंह जी की लिखी कविता प्रस्तुत कर रही हूं,जो मुझे बेहद पसंद आयी। साथ ही मै बिक्रम जी से माफी भी चाहती हूं, कि बिना उनके इजाजत के मै ऐसा कर रही हूं।
आज रात कुछ थमी-थमी सी
स्वप्न न जानें कैसे भटके
नयनों की कोरो से छलके
दूर स्वान की स्वर भेदी से ,हर आशाये डरी-डरी सी
दर्दो का वह उडनखटोला
ले कर मेरे मन को डोला
स्याह रात की जल-धरा से ,मेरी गागर भरी-भरी सी
शंकाओ का कसता धेरा
कैसा होगा मेरा सवेरा
मंजिल के सिरहाने पर ये ,राहें कैसी बटी-बटी सी
विक्रम[vikram7-vikram7.blogspot.com]
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
धन्यवाद नंदिता जी, पर मेरा एक अनुरोध हॆ, कि आप अभी अपने लेखन पर ध्यान दे,या उन जानी मानी हस्तियो के रचनाओ को प्रकाशित करे जो हिन्दी जगत के आधार स्तंभ हॆ.
जवाब देंहटाएंswapn ....aankhe...dard...raat...sanka ...sabko lekar acchi kavita banai hai ...dhanyawad ...badhai ho..
जवाब देंहटाएं-----eksacchai {AAWAZ}
http://eksacchai.blogspot.com
KHOOBSOORAT HAI YE RACHNA VIKRAM JI KI....
जवाब देंहटाएंare yah bhaav to bade pyaare lage....jaayiye vikram ji ki jagah hamne aapko maaf kiyaa...!!
जवाब देंहटाएंbahut pyaare bhaav ...bahut hi sundar hai kavita, vikram ji
जवाब देंहटाएं